Wednesday, 19 August 2020

जाम्भोजी के बारे संक्षिप्त विवरण:श्री आईदानसिंह भाटी


‘सिर साटै ई रूंख रहै तौई सस्तौ जाण’ 

श्री जांभोजी महाराज


जाम्भोजी का जन्म नागौर परगने के पीपासर ग्राम में हुआ था | उनकी जन्म तिथि भाद्रपद वदी अष्टमी, सोमवार, कृतिका नक्षत्र में विक्रमी 1508 में हुआ था | इनकी माता हाँसादेवी (केसर नाम भी मिलता है) छापर के यादववंशी भाटी मोहकमसिंह की पुत्री थी | पिता लोहटजी पंवार (परमार) राजपूत और सम्पन्न किसान थे| जाम्भोजी के दादा रोळौजी अथवा रावळजी प्रसिद्ध व्यक्ति थे | उनके दोपुत्र थे – लोहटजी और पूल्होजी | तांतू नामक एक लोहटजी के बहन भी थी,जिसका विवाह जैसलमेर रियासत के ननैयू ग्राम में हुआ था | लोहटजी का समाज में पर्याप्त मान-सम्मान था, पर संतान सुख नहीं था | 

लोकाख्यानों के अनुसार वे जब बन में एक दिन गायें चरा रहे थे, उन्हें ‘अगम-पुरुष’ योगी मिला जिसने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हारे घर में ‘देव’ पुत्र रूप में अवतरित होंगे | वे जीव-उद्धार के लिए आयेंगे, तुम कोई इचरज मत करना, उदास मत होना, मन में कोई अंदेशा(शंका) मत लाना | योगी ने हाँसाजीको घर के दरवाजे आकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया| हाँसाजी योगी के लिए भिक्षा लेने घर के अंदर गई और लौटी तो वहां योगी का कोई चिन्ह तक नहीं दिखा| लगभग 60 वर्ष की आयु में लोहटजी को पुत्र-रत्न प्राप्त हुआ था | किंवदंतियों के अनुसार न तो बालक ने जन्मघुट्टी ली, न ही जमान पर पीठ के बल लेटा | लोहटजी की इकलौती संतान होने के कारण वे माता-पिता को अतीव प्रिय थे | लोकाख्यानों के अनुसार वे बाल्यावस्था में मौन ही रहते थे, इसलिए लोग उन्हें गूंगा भी कहने लगे थे | कभी कभी वे कुछ ऐसा कर दिखाते थे कि लोग अचम्भा करते थे, इसी कारण लोग उन्हें ‘जम्भा’ कहने लगे |

जाम्भोजी की परम्परा में वील्होजी सुप्रसिद्ध कवि हुए हैं| अपने एक कवित्त में उन्होंने कहा है कि जाम्भोजी ने सात बरस बाळ-लीलावाँ में बिताया, 27 बरस तक गायां चराई और 51 बरस शब्द-कीर्तन में बिताये | वील्होजी के अनुसार – ‘जाम्भ्जी की पलक नहीं झपकती थी, वे पीठ के बल नहीं सोते थे, खाते पीते भी नहीं थे | परेशान इनके पिता लोहटजी इन्हें श्मशानसेवी तांत्रिक के पास ले गए, किन्तु उसके सारे प्रयत्न व्यर्थ गए | वह जाम्भोजी की आध्यात्मिक प्रतिभा से प्रभावित हुआ | इसी अवसर पर कहते हैं जाम्भोजी ने अपना पंला ‘सबद’ कहा| लगभग 16 बरस की वय में ये गोरखनाथ के पंथ वालों के संपर्क में आए और उनसे प्रभावित भी हुए | आपने विवाह की बात उठने पर मना कर दिया, तथा आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का वृत लिया | 1540 विक्रमी में लोह्टजी का देहावसान हो गया, तथा पांच माह पश्चात ही माता हाँसादेवी भटियाणी भी गुजर गई | फिर जाम्भोजी ने घर त्याग दिया और ‘समराथळ-धोरा’ पर जाकर तपस्या करने लगे |

संवत 1542 की कार्तिक वदी अष्टमी को इन्होने ‘कलश-स्थापन’ कर ‘विष्णु’ मंत्र का जाप करने को कहा और अपने पंथ को ‘विष्णुई’ अथवा लोकभाषा में ‘बिश्नोई’ कहा| संवत 1542 में भयंकर अकाल भी पडा था, तब लोग उनके आश्रम में आने लगे थे | जम्भोजी ने उनका पोषण किया, तथा उन्हें ‘विष्णु’ मंत्र देकर पंथ में सम्मिलित किया | उनके काका पूल्होजी के मन में उठी शंकाओं का भी उन्होंने समाधान किया और उन्हें ही सर्वप्रथम अपने पंथ में दीक्षित किया था | अपनी बुआ ताँतू को भी उन्होंने नवलमंत्र देकर अपने धर्म में शामिल कर लिया था | कालांतर में उनके शिष्यों ने 29 नियमों की स्थापना की और उस पर चलने का आग्रह किया | नासमझ लोग इन बीस और नौ नियमों को मानने के कारण बिश्नोई शब्द की उत्पति मानते हैं, यह भ्रामक धारणा है | विष्णु ( राम की तरह एक निराकार ब्रह्म का नाम ) को भजने वाला बिश्नोई- ‘विष्णु विष्णु तूँ भण रे प्राणी |’ का सूक्त ही इस शब्द ने मूल में है |

जाम्भोजी के समय के अनेक प्रवाद और लोकाख्यान प्रचलित हैं | राठौड़ राव दूदा जोधावत की जाम्भोजी से भेंटवार्ता हुई थी और जाम्भोजी से वे अत्यंत प्रभावित हुए थे, उन्हें जाम्भोजी ने काठ की मूठ की तलवार धारण कराई और अहिंसावृत पालन का उपदेश दिया था | राठौड़ राव जोधा को उन्होंने ‘बैरीसाल नगाड़ा’ दिया था, जो कालान्तर में बीकाजी बीकानेर ले गए, जिसकी वहां दशहरा और दीपावली को बीकानेर नरेश पूजन करते हैं | जूनागढ़ में यह नगाड़ा आज भी सुरक्षित है |

बीकानेर के राजकीय झंडे में मूलमंत्र के ऊपर खेजड़े का वृक्ष अंकित है, जो राज्य में जाम्भोजी की मान्यता का सूचक है –

‘करूं रूँख प्रितपाळ, खेजड़ा रावत रखावै’

जोधपुर के राव सातल ने बिश्नोई-पंथ के अनुयायियों को सर्वथा कर मुक्त करना चाहा था किन्तु जाम्भोजी के अनुरोध पर उनकी आमदनी का पांचवां हिस्सा लेना स्वीकार किया –

‘सतगुरु कहे सांतिल करि चीत,

बिश्नोइयों सूं पाळो प्रीत | 

देव कहै राठोड़ौं सुणो,

बिश्नोई गुर –भाई गिणो |’

जाम्भोजी ने सोलंकी नेतसी को अजमेर के सूबेदार मल्लूखां से छुड़वाने के लिए कुछ ‘सबद’ कहे थे, जिसका उसके जीवन पर प्रभाव पड़ा था और उसने गौ-हत्या बंद करवा दी थी |

जैसलमेर के रावल जैतसी ने ‘जैत-समंद’ की प्रतिष्ठा पर जाम्भोजी को बुलाया था और उन्होंने जीव-दया सम्बिन्धित चार वचन उन्हें दिए थे | रावल जैतसी के अनुरोध पर लखमण और पांडू नाम के दो बिश्नोई उनकी रियासत के खरींगा ग्राम में बसे थे |

इस तरह उनके प्रभाव में तत्कालीन अनेक हस्तियाँ आई, जिनमें जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, द्रौणपुर-छापर, चित्तौड़ के शासकों के अलावा नागैर और अजमेर के सूबेदार और बादशाह सिकंदर लोदी तक के नाम लोकाख्यानों में मिलते हैं |

जाम्भोजी ने नाथों से संवाद किया था और उन्हें ‘अरथ-विहूणा’ वाद-विवाद से बचने का कहा था | पाखंड और सांसारिकता में सड़ते हिन्दुओं से कहा –

‘हिन्दु होय के हरि क्यूँ नीं जप्यौ,

काम दह दिस दिल पसरायौ |’ 

इसी तरह मुसलमानों को भी पाखंड और हिंसा से दूर रहने की सीख दी – 

चडि-चडि भीतै मडी मसीतै, क्या उळबंग पुकारौ |

भाई नांऊँ बळद पियारौ, तिहकै गळै करद क्यूँ सारौ||

नंगे-पाँव रहने वाले श्वेताम्बरी मुनियाँ को भी वे इसी तरह उलाहना देते कहते हैं – 

‘तेऊ पारि पहुन्ता नाहीं |

जाकि धोती रही आसमाणी ||’

कर्मवाद के पोषक और उदारता व मानववाद के समर्थक गुरु जाम्भोजी सत्य-अहिंसा के पुजारी थे | जाम्भोजी गुरु गोरख को महत्वपूर्ण मानते हुए कहते हैं कि गुरु गोरख निरंजन, अवधूत और महान है | गोरख अजर-अमर और ईश्वर सामान है | उनकी एक वाणी कहती है – ‘उसी गोरख ने मुझे कहा है कि – तुम सिद्ध हो, तुम सब वर्णों का समन्वय करके पवित्र धर्म की स्थापना करो |’ वस्तुतः जाम्भोजी एक क्रांतिकारी दर्शन के प्रणेता थे, जिसमें भारतीय सभी मतवादों के सत्य का सार था | 

जाम्भोजी का स्वर्गवास संवत 1593 की मार्गशीर्ष वदी नवमी को संभवतः समराथळ पर ही हुआ था | उनके काका पूल्होजी ने जब जाम्भोजी के देहत्याग का सुना तब उन्होंने भी ग्राम रिणसीसर में स्वेच्छा से देह त्याग दी | दोनों भतीजों के देहावसान का सुनकर जाम्भोजी की बुआ तांतू ने भी ननेऊ ग्राम में प्राण त्याग दिए | पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के साथ ही अन्य राज्यों में भी जाम्भोजी के अनुयायी मिलते हैं |

Monday, 14 August 2017

दुआई गॉधी बापू ✋ 👋

भारतमाता ग्रामवासिनी!
खेतों मैं फैला है श्यामल ,
धूल भरा मैला-सा अॉचल!
दुआई गॉधी बापू,छिमा करो😊

मैं हूँ क्योंकि हम हैं!! 💕

उबुन्टु ( UBUNTU ) एक सुंदर कथा...!

उबुन्टु ऑपरेटिंग सिस्टम
( Ubuntu Operating System )

जानते हैं, किससे प्रेरित है इस ऑपरेटिंग सिस्टम का नाम ?
👇
कुछ आफ्रिकन आदीवासी बच्चों को एक मानवविज्ञानी ने एक खेल खेलने को कहा।

उसने एक टोकनी में मिठाइयाँ और कैंडीज एक वृक्ष के पास रख दिए।

बच्चों को वृक्ष से 100 मीटर दूर खड़े कर दिया।

फिर उसने कहा कि, जो बच्चा सबसे पहले पहुँचेगा उसे टोकनी के सारे स्वीट्स मिलेंगे।

जैसे ही उसने, रेड़ी स्टेडी गो कहा.....

तो जानते हैं उन छोटे बच्चों ने क्या किया ?

सभी ने एक दुसरे का हाँथ पकड़ा और एक साथ वृक्ष की ओर दौड़ गए, पास जाकर उन्होंने सारी मिठाइयाँ और कैंडीज आपस में बराबर बाँट लिए और मजे ले लेकर खाने लगे।

जब मानवविज्ञानी ने पूछा कि, उन लोगों ने ऐंसा क्यों किया ?
 
तो उन्होंने कहा---" उबुन्टु ( Ubuntu ) "

जिसका मतलब है,

" कोई एक व्यक्ति कैसे खुश रह सकता है जब, बाकी दूसरे सभी दुखी हों ? "

उबुन्टु ( Ubuntu ) का उनकी भाषा में मतलब है,

" मैं हूँ क्योंकि, हम हैं! "

सभी पीढ़ियों के लिए एक सुन्दर सन्देश,
आइए इस के साथ सब ओर जहाँ भी जाएँ, खुशियाँ बिखेरें,

आइए उबुन्टु ( Ubuntu ) वाली जिंदगी जिएँ.....

‌" मैं हूँ क्योंकि, हम हैं..!! "👍👍👍

Thursday, 6 April 2017

Motivational Story👏👏👏

प्रेरणाप्रद कहानी

 एक 6 वर्ष का बालक अपनी 4 वर्ष की बहन के साथ एक बाजार से गुजर रहा था। अचानक बालक ने पाया कि उसकी बहन पीछे ठहर गई है। बालक ठहरा और मुड़कर पीछे देखा। उसकी बहन खिलौने की एक दुकान के सामने खड़ी थी और बड़े ध्यान से कुछ देख रही थी। बालक वापस लौटा और अपनी बहन से पूछा, ‘‘ क्या तुम कुछ चाहती हो?’’ बहन ने एक गुड़िया की ओर संकेत किया। बालक ने उसका हाथ पकड़ा और एक जिम्मेदार बड़े भाई की तरह गुड़िया उसे दे दी। बहन बहुत ज्यादा खुश हो गई। दुकानदार यह सब देख रहा था और लड़के के परिपक्व व्यवहार के देखकर आनंदित हो रहा था... अब लड़के ने काउंटर पर जाकर दुकानदार से पूछा, “ इस गुड़िया की कीमत क्या है, श्रीमान!” दुकानदार एक धैर्यवान व्यक्ति था और जीवन की समस्याओं से परिचित था। इसलिए उसने बालक से बहुत प्यार और स्नेह से कहा, “ जो भी तुम दे सकते हो?” लड़के ने अपनी जेब से वे सभी कौड़ियां बाहर निकालीं जो उसने सागर तट से एकत्र की थीं और उनको दुकानदार को दे दिया। दुकानदार ने कौड़ियों को लिया और ऐसे गिनना शुरू किया, जैसे पैसे गिन रहा हो। तब उसने बच्चे की ओर देखा। बच्चे ने चिंता से पूछा, “क्या यह कम है?” दुकानदार ने कहा, “नहीं, नहीं..ये कीमत से अधिक हैं। इसलिए मैं बाकी वापस लौटाऊंगा।” ऐसा कहकर उसने केवल 4 कौड़ियां लीं और शेष वापस कर दी। बालक ने बहुत खुशी से बाकी कौड़ियां अपनी जेब में रखीं और बहन के साथ चला गया। उस दुकान में एक नौकर यह सब देखकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ। उसने अपने मालिक से पूछा, “ श्रीमान! आपने वह महंगी गुड़िया केवल 4 कौड़ियों के बदले में दे दी।” दुकानदार ने मुस्कुरा कर कहा, “ हमारे लिए ये केवल मामूली कौड़ियां हैं लेकिन उस बालक के लिए ये कौड़ियां बहुत मूल्यवान हैं। इस उम्र में वह नहीं समझता कि पैसा क्या होता है लेकिन जब वह बड़ा होगा तो वह निश्चित ही समझेगा। जब वह याद करेगा कि उसने एक गुड़िया को पैसों की बजाय कौड़ियों से खरीदा था तब वह मुझे याद करेगा और सोचेगा कि यह दुनिया अच्छे लोगों से भरी है। यह उसे एक सकारात्मक मनोवृत्ति विकसित करने में मदद करेगा और वह भी इस तरह से अच्छा बनने के प्रेरित होगा। ” कहानी का मूलमंत्र- जो भी भावना आप दुनिया में डालते हो वह आगे फैलती है। यदि आप अच्छा करते हैं तो अच्छाई बढ़ेगी। यदि आप खराब करते हैं तो नकारात्मकता बढ़ेगी। इस बात को महसूस कीजिए कि आप ऊर्जा के एक बहुत शक्तिशाली स्रोत हैं। अच्छाई या बुराई कई गुना बढ़कर आपके पास लौटती है। उस तरीके से नहीं जैसा कि आप चाहते हैं और न उन तरीकों से जिनकों आप समझ सकते हैं। लेकिन वह वापस लौटेगी।

Friday, 3 February 2017

राधे-२

आज तक का सबसे सुदंर मैसेज .........ये पढने के बाद एक "आह" और एक "वाह" जरुर निकलेगी...

कृष्ण और राधा स्वर्ग में विचरण करते हुए
अचानक एक दुसरे के सामने आ गए

विचलित से कृष्ण-
प्रसन्नचित सी राधा...

कृष्ण सकपकाए,
राधा मुस्काई

इससे पहले कृष्ण कुछ कहते
राधा बोल💬 उठी-

"कैसे हो द्वारकाधीश ??"

जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी
उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया

फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया

और बोले राधा से ...

"मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ
तुम तो द्वारकाधीश मत कहो!

आओ बैठते है ....
कुछ मै अपनी कहता हूँ
कुछ तुम अपनी कहो

सच कहूँ राधा
जब जब भी तुम्हारी याद आती थी
इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी..."

बोली राधा -
"मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ
ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा
क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते

इन आँखों में सदा तुम रहते थे
कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ
इसलिए रोते भी नहीं थे

प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया
इसका इक आइना दिखाऊं आपको ?

कुछ कडवे सच , प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?

कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए
यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?

एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर भरोसा कर लिया
और
दसों उँगलियों पर चलने वाळी
बांसुरी को भूल गए ?

कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ....
जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी
प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली
क्या क्या रंग दिखाने लगी ?
सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी

कान्हा और द्वारकाधीश में
क्या फर्क होता है बताऊँ ?

कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते
सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता

युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है
युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं
और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं

कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमी
दुखी तो रह सकता है
पर किसी को दुःख नहीं देता

आप तो कई कलाओं के स्वामी हो
स्वप्न दूर द्रष्टा हो
गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो

पर आपने क्या निर्णय किया
अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी?
और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया ?

सेना तो आपकी प्रजा थी
राजा तो पालाक होता है
उसका रक्षक होता है

आप जैसा महा ज्ञानी
उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन
आपकी प्रजा को ही मार रहा था
आपनी प्रजा को मरते देख
आपमें करूणा नहीं जगी ?

क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे

आज भी धरती पर जाकर देखो

अपनी द्वारकाधीश वाळी छवि को
ढूंढते रह जाओगे
हर घर हर मंदिर में
मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे

आज भी मै मानती हूँ

लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं
उनके महत्व की बात करते है

मगर धरती के लोग
युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं, i.
प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं

गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है,
पर आज भी लोग उसके समापन पर " राधे राधे" करते है". 🙏😊☺
Must Read Once
... जय श्रीकृष्णा 👏🌹🌷