Tuesday 1 September 2020

शादी के बाद का घर

 शादी केबहुत लंबे समय के बाद एक कविता (कविता है भी या नहीं, नहीं जानता) आप सब की मुहब्बत के हवाले।


शादी के बाद का घर


सब मेहमान लौट चुके हैं

बस एक दो ठहरे हुए हैं

शादी के बाद का घर देखा है कभी?

काट खाने को दौड़ता है वो

एक दो लाइट्स हैं जो बुझे मन से जग रही हैं

कोशिश कर रही हैं थोड़ी रौनक लाने की

टेंट वाला छोड़ गया था 

कह रहा था सुबह लड़का उतार लें जाएगा

दो चार घंटों में कौनसा बिल आ रहा है?


टेंट तो उतार लिया उसने

बस अब तो उखाड़े गए पाइप के निशान बाकी है

गीली जमीन पर गोल गोल

कुछ डिस्पोजल उड़ रहे हैं इधर उधर

जूठे बचे खाने पर कुत्तों का समर चल रहा है

टेंट वाले की कुछ कुर्सियाँ बिखरी पड़ी हैं

गद्दे बिछे हुए हैं बैठक में

बिल्कुल खाली, कोई नहीं सोया आज उन पर।

मिठाइयों के टुकड़े बिखरे पड़े हैं

जो बड़े चाव से बनाई थी

एक मिठाई तो बड़ी बहन की जिद्द पर बनी थी

ज़्यादा है तो बिखेर दी

कम होती तो उठा के फूक मार के खा लेते।


डेकोरेशन लाइट जग बुझ रही है

जैसे शोर करना चाह रही हो लेकिन

आवाज नहीं निकल रही

सब ओर सन्नाटा है

बस अंदर भूचाल आया हुआ है

मेहमान आये थे तो खुशी थी

गए थे तब भी खुशी ही थी

लेकिन अब जाने क्या हुआ है

कुछ तो मर ही जाता है अंदर,

विदा होने के बाद।


कितने अच्छे लग रहे थे

स्वागत में बिछे फूल

अब मरे पड़े हैं

वक़्त गुज़र जाने पर

हर हसीन चीज का हश्र बुरा होता है

सब से बदसूरत लगती है

वक़्त के बाद हर खूबसूरत चीज।


एक कोने में दो स्पीकर पड़े हैं

उन पर कुछ चाय के जूठे कप रखे हुए हैं

बच्चे ले आये थे डांस करने के लिये

चार पाँच दिन से नाच रहे थे सब इनके आगे

आज किसी ने संभाल कर भी नहीं रखे

हर शादी में इनके साथ भी यही होता होगा

अंत में डाल दिये जाते होंगे किसी कोने में।


घरवाले भी सो गए थक हार कर

जिसको जहाँ जगह मिली वहीं

बस मुझे ही नींद नहीं आ रही

आये भी कैसे

बेटी गई है ना घर से

पहली बार, हमेशा के लिए

बिना कहे कि 'टाइम से घर आ जाऊंगी।'

Thursday 27 August 2020

Bishnoi tree Huggers:🙏निवन प्रणाम 🙏 #सिर_साटे_रूंख_रहे,तो भी सस्तौ जाण।





 🙏निवन प्रणाम 🙏

             हरे वृक्ष #खेजड़ी के लिए #अमृता_देवी_विश्नोई के एक आह्वान पर #363 लोगों ने अपनी #अमर_शहादत की घटना आज भी #विश्नोई_समाज ही नहीं बल्कि समूचे #विश्व_को_प्रकृति_और_पर्यावरण बचाने की प्रेरणा दे रहा है। खेजड़ली गांव में #चिपको_आन्दोलन की प्रणेता अमृतदेवी बिश्नोई तथा उनकी तीन मासूम पुत्रियों #आसु_रतनी_भागु ने पेड़ों की रक्षा के लिए पेड़ों से लिपट कर एक आह्वान किया .... 

#सिर_साटे_रूंख_रहे,तो भी सस्तौ जाण। 

अर्थात पेड़ बचाने के लिए यदि शीश भी कट जाता है तो यह सौदा सस्ता है।


जोधपुर शहर से 28 किलोमीटर दूर खेजड़ली वो धरती है जहां 15वीं सदी में #विश्नोई_समाज_प्रर्वतक_गुरु_जम्भेश्वर के 29 नियमों की सदाचार प्रेरणा से #363 महिला-पुरुषों ने पर्यावरण संरक्षण को अपना धर्म मानते हुए #290_वर्ष_पूर्व_सन_1730आज ही के दिन अपने प्राणों का बलिदान किया। 

प्रकृति संरक्षण को महत्व देने वाले गुरु जम्भेश्वर के बताए 29 नियमों में #जीव_दया_पालणी, #रूंख_लीलौ_नहि_घावै और अमृता देवी का एक नारा #सिर_सांठै_रूंख_रहे_तौ_भी_सस्तौ_जाण का अनुसरण विश्नोई समाज सदियों से करता आ रहा है। मारवाड़ और राजस्थान के विभिन्न जिलों सहित हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश, पंजाब आदि राज्यों में बिश्नोई समाज की विभिन्न संस्थाओं की ओर से खेजड़ली के 363 शहीदों की स्मृति में  अमृता देवी उप वन-वाटिका स्थापित हो चुकी है। तथा पौधे लगाकर उनकी नियमित देखभाल हो रही है।

 

Wednesday 19 August 2020

जाम्भोजी के बारे संक्षिप्त विवरण:श्री आईदानसिंह भाटी


‘सिर साटै ई रूंख रहै तौई सस्तौ जाण’ 

श्री जांभोजी महाराज


जाम्भोजी का जन्म नागौर परगने के पीपासर ग्राम में हुआ था | उनकी जन्म तिथि भाद्रपद वदी अष्टमी, सोमवार, कृतिका नक्षत्र में विक्रमी 1508 में हुआ था | इनकी माता हाँसादेवी (केसर नाम भी मिलता है) छापर के यादववंशी भाटी मोहकमसिंह की पुत्री थी | पिता लोहटजी पंवार (परमार) राजपूत और सम्पन्न किसान थे| जाम्भोजी के दादा रोळौजी अथवा रावळजी प्रसिद्ध व्यक्ति थे | उनके दोपुत्र थे – लोहटजी और पूल्होजी | तांतू नामक एक लोहटजी के बहन भी थी,जिसका विवाह जैसलमेर रियासत के ननैयू ग्राम में हुआ था | लोहटजी का समाज में पर्याप्त मान-सम्मान था, पर संतान सुख नहीं था | 

लोकाख्यानों के अनुसार वे जब बन में एक दिन गायें चरा रहे थे, उन्हें ‘अगम-पुरुष’ योगी मिला जिसने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हारे घर में ‘देव’ पुत्र रूप में अवतरित होंगे | वे जीव-उद्धार के लिए आयेंगे, तुम कोई इचरज मत करना, उदास मत होना, मन में कोई अंदेशा(शंका) मत लाना | योगी ने हाँसाजीको घर के दरवाजे आकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया| हाँसाजी योगी के लिए भिक्षा लेने घर के अंदर गई और लौटी तो वहां योगी का कोई चिन्ह तक नहीं दिखा| लगभग 60 वर्ष की आयु में लोहटजी को पुत्र-रत्न प्राप्त हुआ था | किंवदंतियों के अनुसार न तो बालक ने जन्मघुट्टी ली, न ही जमान पर पीठ के बल लेटा | लोहटजी की इकलौती संतान होने के कारण वे माता-पिता को अतीव प्रिय थे | लोकाख्यानों के अनुसार वे बाल्यावस्था में मौन ही रहते थे, इसलिए लोग उन्हें गूंगा भी कहने लगे थे | कभी कभी वे कुछ ऐसा कर दिखाते थे कि लोग अचम्भा करते थे, इसी कारण लोग उन्हें ‘जम्भा’ कहने लगे |

जाम्भोजी की परम्परा में वील्होजी सुप्रसिद्ध कवि हुए हैं| अपने एक कवित्त में उन्होंने कहा है कि जाम्भोजी ने सात बरस बाळ-लीलावाँ में बिताया, 27 बरस तक गायां चराई और 51 बरस शब्द-कीर्तन में बिताये | वील्होजी के अनुसार – ‘जाम्भ्जी की पलक नहीं झपकती थी, वे पीठ के बल नहीं सोते थे, खाते पीते भी नहीं थे | परेशान इनके पिता लोहटजी इन्हें श्मशानसेवी तांत्रिक के पास ले गए, किन्तु उसके सारे प्रयत्न व्यर्थ गए | वह जाम्भोजी की आध्यात्मिक प्रतिभा से प्रभावित हुआ | इसी अवसर पर कहते हैं जाम्भोजी ने अपना पंला ‘सबद’ कहा| लगभग 16 बरस की वय में ये गोरखनाथ के पंथ वालों के संपर्क में आए और उनसे प्रभावित भी हुए | आपने विवाह की बात उठने पर मना कर दिया, तथा आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का वृत लिया | 1540 विक्रमी में लोह्टजी का देहावसान हो गया, तथा पांच माह पश्चात ही माता हाँसादेवी भटियाणी भी गुजर गई | फिर जाम्भोजी ने घर त्याग दिया और ‘समराथळ-धोरा’ पर जाकर तपस्या करने लगे |

संवत 1542 की कार्तिक वदी अष्टमी को इन्होने ‘कलश-स्थापन’ कर ‘विष्णु’ मंत्र का जाप करने को कहा और अपने पंथ को ‘विष्णुई’ अथवा लोकभाषा में ‘बिश्नोई’ कहा| संवत 1542 में भयंकर अकाल भी पडा था, तब लोग उनके आश्रम में आने लगे थे | जम्भोजी ने उनका पोषण किया, तथा उन्हें ‘विष्णु’ मंत्र देकर पंथ में सम्मिलित किया | उनके काका पूल्होजी के मन में उठी शंकाओं का भी उन्होंने समाधान किया और उन्हें ही सर्वप्रथम अपने पंथ में दीक्षित किया था | अपनी बुआ ताँतू को भी उन्होंने नवलमंत्र देकर अपने धर्म में शामिल कर लिया था | कालांतर में उनके शिष्यों ने 29 नियमों की स्थापना की और उस पर चलने का आग्रह किया | नासमझ लोग इन बीस और नौ नियमों को मानने के कारण बिश्नोई शब्द की उत्पति मानते हैं, यह भ्रामक धारणा है | विष्णु ( राम की तरह एक निराकार ब्रह्म का नाम ) को भजने वाला बिश्नोई- ‘विष्णु विष्णु तूँ भण रे प्राणी |’ का सूक्त ही इस शब्द ने मूल में है |

जाम्भोजी के समय के अनेक प्रवाद और लोकाख्यान प्रचलित हैं | राठौड़ राव दूदा जोधावत की जाम्भोजी से भेंटवार्ता हुई थी और जाम्भोजी से वे अत्यंत प्रभावित हुए थे, उन्हें जाम्भोजी ने काठ की मूठ की तलवार धारण कराई और अहिंसावृत पालन का उपदेश दिया था | राठौड़ राव जोधा को उन्होंने ‘बैरीसाल नगाड़ा’ दिया था, जो कालान्तर में बीकाजी बीकानेर ले गए, जिसकी वहां दशहरा और दीपावली को बीकानेर नरेश पूजन करते हैं | जूनागढ़ में यह नगाड़ा आज भी सुरक्षित है |

बीकानेर के राजकीय झंडे में मूलमंत्र के ऊपर खेजड़े का वृक्ष अंकित है, जो राज्य में जाम्भोजी की मान्यता का सूचक है –

‘करूं रूँख प्रितपाळ, खेजड़ा रावत रखावै’

जोधपुर के राव सातल ने बिश्नोई-पंथ के अनुयायियों को सर्वथा कर मुक्त करना चाहा था किन्तु जाम्भोजी के अनुरोध पर उनकी आमदनी का पांचवां हिस्सा लेना स्वीकार किया –

‘सतगुरु कहे सांतिल करि चीत,

बिश्नोइयों सूं पाळो प्रीत | 

देव कहै राठोड़ौं सुणो,

बिश्नोई गुर –भाई गिणो |’

जाम्भोजी ने सोलंकी नेतसी को अजमेर के सूबेदार मल्लूखां से छुड़वाने के लिए कुछ ‘सबद’ कहे थे, जिसका उसके जीवन पर प्रभाव पड़ा था और उसने गौ-हत्या बंद करवा दी थी |

जैसलमेर के रावल जैतसी ने ‘जैत-समंद’ की प्रतिष्ठा पर जाम्भोजी को बुलाया था और उन्होंने जीव-दया सम्बिन्धित चार वचन उन्हें दिए थे | रावल जैतसी के अनुरोध पर लखमण और पांडू नाम के दो बिश्नोई उनकी रियासत के खरींगा ग्राम में बसे थे |

इस तरह उनके प्रभाव में तत्कालीन अनेक हस्तियाँ आई, जिनमें जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, द्रौणपुर-छापर, चित्तौड़ के शासकों के अलावा नागैर और अजमेर के सूबेदार और बादशाह सिकंदर लोदी तक के नाम लोकाख्यानों में मिलते हैं |

जाम्भोजी ने नाथों से संवाद किया था और उन्हें ‘अरथ-विहूणा’ वाद-विवाद से बचने का कहा था | पाखंड और सांसारिकता में सड़ते हिन्दुओं से कहा –

‘हिन्दु होय के हरि क्यूँ नीं जप्यौ,

काम दह दिस दिल पसरायौ |’ 

इसी तरह मुसलमानों को भी पाखंड और हिंसा से दूर रहने की सीख दी – 

चडि-चडि भीतै मडी मसीतै, क्या उळबंग पुकारौ |

भाई नांऊँ बळद पियारौ, तिहकै गळै करद क्यूँ सारौ||

नंगे-पाँव रहने वाले श्वेताम्बरी मुनियाँ को भी वे इसी तरह उलाहना देते कहते हैं – 

‘तेऊ पारि पहुन्ता नाहीं |

जाकि धोती रही आसमाणी ||’

कर्मवाद के पोषक और उदारता व मानववाद के समर्थक गुरु जाम्भोजी सत्य-अहिंसा के पुजारी थे | जाम्भोजी गुरु गोरख को महत्वपूर्ण मानते हुए कहते हैं कि गुरु गोरख निरंजन, अवधूत और महान है | गोरख अजर-अमर और ईश्वर सामान है | उनकी एक वाणी कहती है – ‘उसी गोरख ने मुझे कहा है कि – तुम सिद्ध हो, तुम सब वर्णों का समन्वय करके पवित्र धर्म की स्थापना करो |’ वस्तुतः जाम्भोजी एक क्रांतिकारी दर्शन के प्रणेता थे, जिसमें भारतीय सभी मतवादों के सत्य का सार था | 

जाम्भोजी का स्वर्गवास संवत 1593 की मार्गशीर्ष वदी नवमी को संभवतः समराथळ पर ही हुआ था | उनके काका पूल्होजी ने जब जाम्भोजी के देहत्याग का सुना तब उन्होंने भी ग्राम रिणसीसर में स्वेच्छा से देह त्याग दी | दोनों भतीजों के देहावसान का सुनकर जाम्भोजी की बुआ तांतू ने भी ननेऊ ग्राम में प्राण त्याग दिए | पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के साथ ही अन्य राज्यों में भी जाम्भोजी के अनुयायी मिलते हैं |

Monday 14 August 2017

दुआई गॉधी बापू ✋ 👋

भारतमाता ग्रामवासिनी!
खेतों मैं फैला है श्यामल ,
धूल भरा मैला-सा अॉचल!
दुआई गॉधी बापू,छिमा करो😊

मैं हूँ क्योंकि हम हैं!! 💕

उबुन्टु ( UBUNTU ) एक सुंदर कथा...!

उबुन्टु ऑपरेटिंग सिस्टम
( Ubuntu Operating System )

जानते हैं, किससे प्रेरित है इस ऑपरेटिंग सिस्टम का नाम ?
👇
कुछ आफ्रिकन आदीवासी बच्चों को एक मानवविज्ञानी ने एक खेल खेलने को कहा।

उसने एक टोकनी में मिठाइयाँ और कैंडीज एक वृक्ष के पास रख दिए।

बच्चों को वृक्ष से 100 मीटर दूर खड़े कर दिया।

फिर उसने कहा कि, जो बच्चा सबसे पहले पहुँचेगा उसे टोकनी के सारे स्वीट्स मिलेंगे।

जैसे ही उसने, रेड़ी स्टेडी गो कहा.....

तो जानते हैं उन छोटे बच्चों ने क्या किया ?

सभी ने एक दुसरे का हाँथ पकड़ा और एक साथ वृक्ष की ओर दौड़ गए, पास जाकर उन्होंने सारी मिठाइयाँ और कैंडीज आपस में बराबर बाँट लिए और मजे ले लेकर खाने लगे।

जब मानवविज्ञानी ने पूछा कि, उन लोगों ने ऐंसा क्यों किया ?
 
तो उन्होंने कहा---" उबुन्टु ( Ubuntu ) "

जिसका मतलब है,

" कोई एक व्यक्ति कैसे खुश रह सकता है जब, बाकी दूसरे सभी दुखी हों ? "

उबुन्टु ( Ubuntu ) का उनकी भाषा में मतलब है,

" मैं हूँ क्योंकि, हम हैं! "

सभी पीढ़ियों के लिए एक सुन्दर सन्देश,
आइए इस के साथ सब ओर जहाँ भी जाएँ, खुशियाँ बिखेरें,

आइए उबुन्टु ( Ubuntu ) वाली जिंदगी जिएँ.....

‌" मैं हूँ क्योंकि, हम हैं..!! "👍👍👍

Thursday 6 April 2017

Motivational Story👏👏👏

प्रेरणाप्रद कहानी

 एक 6 वर्ष का बालक अपनी 4 वर्ष की बहन के साथ एक बाजार से गुजर रहा था। अचानक बालक ने पाया कि उसकी बहन पीछे ठहर गई है। बालक ठहरा और मुड़कर पीछे देखा। उसकी बहन खिलौने की एक दुकान के सामने खड़ी थी और बड़े ध्यान से कुछ देख रही थी। बालक वापस लौटा और अपनी बहन से पूछा, ‘‘ क्या तुम कुछ चाहती हो?’’ बहन ने एक गुड़िया की ओर संकेत किया। बालक ने उसका हाथ पकड़ा और एक जिम्मेदार बड़े भाई की तरह गुड़िया उसे दे दी। बहन बहुत ज्यादा खुश हो गई। दुकानदार यह सब देख रहा था और लड़के के परिपक्व व्यवहार के देखकर आनंदित हो रहा था... अब लड़के ने काउंटर पर जाकर दुकानदार से पूछा, “ इस गुड़िया की कीमत क्या है, श्रीमान!” दुकानदार एक धैर्यवान व्यक्ति था और जीवन की समस्याओं से परिचित था। इसलिए उसने बालक से बहुत प्यार और स्नेह से कहा, “ जो भी तुम दे सकते हो?” लड़के ने अपनी जेब से वे सभी कौड़ियां बाहर निकालीं जो उसने सागर तट से एकत्र की थीं और उनको दुकानदार को दे दिया। दुकानदार ने कौड़ियों को लिया और ऐसे गिनना शुरू किया, जैसे पैसे गिन रहा हो। तब उसने बच्चे की ओर देखा। बच्चे ने चिंता से पूछा, “क्या यह कम है?” दुकानदार ने कहा, “नहीं, नहीं..ये कीमत से अधिक हैं। इसलिए मैं बाकी वापस लौटाऊंगा।” ऐसा कहकर उसने केवल 4 कौड़ियां लीं और शेष वापस कर दी। बालक ने बहुत खुशी से बाकी कौड़ियां अपनी जेब में रखीं और बहन के साथ चला गया। उस दुकान में एक नौकर यह सब देखकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ। उसने अपने मालिक से पूछा, “ श्रीमान! आपने वह महंगी गुड़िया केवल 4 कौड़ियों के बदले में दे दी।” दुकानदार ने मुस्कुरा कर कहा, “ हमारे लिए ये केवल मामूली कौड़ियां हैं लेकिन उस बालक के लिए ये कौड़ियां बहुत मूल्यवान हैं। इस उम्र में वह नहीं समझता कि पैसा क्या होता है लेकिन जब वह बड़ा होगा तो वह निश्चित ही समझेगा। जब वह याद करेगा कि उसने एक गुड़िया को पैसों की बजाय कौड़ियों से खरीदा था तब वह मुझे याद करेगा और सोचेगा कि यह दुनिया अच्छे लोगों से भरी है। यह उसे एक सकारात्मक मनोवृत्ति विकसित करने में मदद करेगा और वह भी इस तरह से अच्छा बनने के प्रेरित होगा। ” कहानी का मूलमंत्र- जो भी भावना आप दुनिया में डालते हो वह आगे फैलती है। यदि आप अच्छा करते हैं तो अच्छाई बढ़ेगी। यदि आप खराब करते हैं तो नकारात्मकता बढ़ेगी। इस बात को महसूस कीजिए कि आप ऊर्जा के एक बहुत शक्तिशाली स्रोत हैं। अच्छाई या बुराई कई गुना बढ़कर आपके पास लौटती है। उस तरीके से नहीं जैसा कि आप चाहते हैं और न उन तरीकों से जिनकों आप समझ सकते हैं। लेकिन वह वापस लौटेगी।